उत्तराखंड

रिकॉर्ड बनाने से पहले ही चले गए विकास पुरुष हरबंस कपूर….

.देहरादून।

आजादी के बाद से उत्तराखंड क्षेत्र के तीसरे सबसे वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर अब हमारे बीच नहीं रहे। हरबंस कपूर पुराने दूनवासियों को एक सहज, मिलनसार, संघर्षशील और अपेक्षाकृत निर्विवादित जनप्रतिनिधि के तौर पर याद रहेंगे। 1946 में अविभाजित भारत के बन्नू क्षेत्र में जन्में कपूर एनडी तिवारी और गुलाब सिंह के बाद ऐसे तीसरे विधायक हुए, जो 8वीं बार विधानसभा का हिस्सा बने। उम्मीद की जा रही थी कि वे दो महीने बाद नया रिकॉर्ड कायम करेंगे, मगर उससे पहले ही चले गए। 1985 में देहरादून नगर विधानसभा सीट से कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट से पहला चुनाव हरबंस कपूर हार गए थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने कभी हार नहीं देखी। 1989, 1991, 1993 और 1996 में यूपी, जबकि 2002, 2007, 2012 और 2017 में वे उत्तराखंड विधानसभा का हिस्सा बने। 1991-92 में उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार में वे पहली बार ग्रामीण विकास राज्यमंत्री बनाये गए थे। उत्तराखंड में नगर विकास मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष भी वे रह चुके हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन रहा हो या स्थानीय जन समस्याओं से सम्बंधित आंदोलन, वे हमेशा सक्रिय रहे। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान भी वे अनेक मौकों पर सक्रिय रहे और जेल गए। वे विधायक होने के बावजूद क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी समस्या के प्रति जागरूक रहते थे। आए दिन किसी न किसी मुद्दे को लेकर उन्हें डीएम आफिस या अन्यत्र जुलूस-प्रदर्शन करते देखा जा सकता था।
1990 के दशक में अपने पुराने स्कूटर पर कार्यकर्ताओं या क्षेत्र के मतदाताओं के सुख-दुख में सहभागी बनने पहुंच जाना, उन्हें तमाम अन्य नेताओं से अलग करता था और यही उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह भी थी। कई मौकों पर तीखे तेवर दिखाने का उनका प्रयास जरूर छोटे-मोटे विवाद खड़ा कर देता था। मसलन-1998 में अतिक्रमण विरोधी अभियान से गुस्साए कपूर साहब की तत्कालीन डीएम पर एन घण्टाघर चौक पर हड़काने वाले अंदाज़ में की गयी टिप्पणी ने उन्हें कई दिन तक सुर्खियों में रखा। इसी तरह उत्तराखंड विधानसभा में उनके और कांग्रेस के विधायक (अब भाजपा से मंत्री) के बीच टिप्पणियों को लेकर छिड़ा विवाद कई दिन तक सदन से सड़क तक हंगामे के सबब बना। वहीं कपूर साहब की एक खासियत यह भी थी कि ज्यों ही उन्हें एहसास होता था कि विवाद गैर वाजिब है, वे उसे तूल देने के बजाय हमेशा मौन होकर खत्म कर देते थे।

देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल

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